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SC ने नीट कट-ऑफ घटाने को अवैध ठहराकर डेंटल कॉलेजों पर 10 करोड़ जुर्माना लगाया
RKRakesh Kumar Bhardwaj
Dec 19, 2025 17:46:05
Jodhpur, Rajasthan
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कोई भी राज्य सरकार नीट-यूजी परीक्षा में निर्धारित न्यूनतम योग्यता (कट-ऑफ परसेंटाइल) को अपने स्तर पर कम नहीं कर सकती। राजस्थान में वर्ष 2016–17 के दौरान बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी) पाठ्यक्रम में प्रवेश को लेकर हुए विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की कार्रवाई को स्पष्ट रूप से अवैध करार देते हुए दोषी निजी डेंटल कॉलेजों पर 10 करोड़ का भारी जुर्माना लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण अधिकारों का प्रयोग करते हुए उन छात्रों की डिग्रियों को सुरक्षित रखा है, जिन्होंने पहले ही बीडीएस कोर्स पूरा कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस जे. के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की बेंच ने छात्रों, निजी डेंटल कॉलेजों और डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (डीसीआई) द्वारा दायर अपीलों पर सुनाया। ये अपीलें राजस्थान हाईकोर्ट के 2023 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थीं। क्या था पूरा मामला नीट को देशभर में मेडिकल और डेंटल कोर्सों में प्रवेश के लिए एकमात्र परीक्षा बनाए जाने के बाद, संशोधित बीडीएस कोर्स रेगुलेशंस, 2007 के तहत सामान्य वर्ग के लिए न्यूनतम 50 पर्सेंटाइल, एससी/एसटी/ओबीसी के लिए 40 पर्सेंटाइल को अनिवार्य किया गया था। इन नियमों के अनुसार कट-ऑफ में कमी करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है, वह भी डीसीआई से परामर्श के बाद। लेकिन 2016–17 में राजस्थान के निजी डेंटल कॉलेजों में बड़ी संख्या में सीटें खाली रह गईं। निजी कॉलेजों के दबाव में राज्य सरकार ने 30 सितंबर और 4 अक्टूबर 2016 को आदेश जारी कर नीट कट-ऑफ में पहले 10 पर्सेंटाइल और फिर 5 पर्सेंटाइल की अतिरिक्त छूट दे दी। इसके आधार पर कई कॉलेजों ने ऐसे छात्रों को प्रवेश दे दिया, जिनके नीट स्कोर शून्य या नकारात्मक थे, और केवल 12वीं के अंकों के आधार पर दाखिले कर लिए गए। सुप्रीम कोर्ट का रुख सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि केंद्र सरकार ने कभी भी राज्य को ऐसा कोई अधिकार नहीं सौंपा था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार की यह कार्रवाई कानून के विरुद्ध थी और डेंटल शिक्षा के मानकों को कमजोर करने वाली थी। कोर्ट ने माना कि इस पूरे प्रकरण में राज्य सरकार, निजी कॉलेज, डीसीआई और केंद्र सरकार सभी की कुछ न कुछ जिम्मेदारी बनती है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि सबसे अधिक नुकसान छात्रों को हुआ है। कई छात्र अंतरिम आदेशों के तहत पढ़ाई पूरी कर चुके थे और अब उनकी डिग्रियां रद्द करना अन्यायपूर्ण होता। इसलिए अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट ने ऐसे सभी छात्रों की डिग توزي डिग्रियों को नियमित (रेगुलराइज) कर दिया। लेकिन यह राहत केवल उन्हीं छात्रों तक सीमित रहेगी, जिन्होंने निर्धारित अधिकतम अवधि (9 वर्ष) के भीतर बीडीएस कोर्स पूरा कर लिया है। साथ ही, इन छात्रों को शर्त रखी गई है कि वे राजस्थान हाईकोर्ट में शपथपत्र देकर यह वचन देंगे कि वे अपने जीवनकाल में अधिकतम दो वर्ष तक प्राकृतिक आपदा, महामारी या सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के समय राज्य को निःशुल्क दंत चिकित्सा सेवाएं देंगे। भारी जुर्माना और सामाजिक उपयोग सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माने को बढ़ाते हुए प्रत्येक दोषी निजी डेंटल कॉलेज पर 10 करोड़ का जुर्माना लगाया है। वहीं राजस्थान राज्य सरकार को 10 लाख जमा करने का निर्देश दिया गया है। यह राशि राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा होगी और उससे प्राप्त ब्याज का उपयोग महिला, बाल और वृद्ध कल्याण से जुड़ी संस्थाओं के सुधार और रखरखाव में किया जाएगा।
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