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अरावली खत्म होने पर राजस्थान और उत्तर भारत पर बदलेगा जल-जीवन और मरुस्थलीकरण
ACAshish Chauhan
Dec 21, 2025 09:03:44
Jaipur, Rajasthan
बारावली पर सोशल मीडिया पर आर-पार: अरावली एक सभ्यता नहीं बल्कि जीवन का आधार है
जयपुर- अरावली एक पर्वतमाला नहीं, बल्कि एक सभ्यता है. अरावली एक पहाड़ नहीं, बल्कि एक जीवन है. अरावली सिर्फ 100 मीटर की नहीं, बल्कि उससे कम भी अरावली है. सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक पूरे देश में अरावली पर नई बहस छिड़ गई है? कि अरावली का भविष्य कैसे बचेगा? कैसे अरावली बच पाएगी? कैसे अरावली से जीवन खतरे में है. भविष्य के इन सवालों के बीच देंखे अरावली पर खास रिपोर्ट!
जब दुनिया लिखी थी नहीं थी तब अरावली खड़ा था- अरावली जब दुनिया लिखी भी नहीं जाती थी तब अरावली खड़ा था... जब शहर का मतलब मिट्टी और घर होता था... जब राजा महाराजा पानी के लिए किसी पहाड़ की तरफ देखते थे... डेजर्ट को रोकने के लिए कोई वॉल नहीं थी और सिर्फ अरावली था... यह दुनिया के सबसे पुराने पर्वत मालाओं में से एक है, और आज उस पहाड़ से पूछ रहे है तुम सौ मीटर के हो गया नहीं... इतिहास कहता है अरावली ने डेजर्ट रोका... साइंस कहता है ये ग्राउंड WATER का गार्जन है... और इसी बीच हर वो बच्चा आज पूछता है... जो इतना पुराणा है क्या इसे बचाना जरूरी नहीं होता... अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं... ये दीवार है... ये दीवारी गिरी तो हम भी गिर जाएंगे. सोशल मीडिया पर अरावली को बचाने के लिए कुछ इसी तरह की भावनाओं का पहाड़ बिछा है. 1.7 करोड़ साल पुरानी अरावली पर्वतमाला के भविष्य पर चिंताओं का ज्वार फेला है.
अलवर से बांसवाड़ा 14 जिलों में अरावली- 1.7 करोड़ साल पुरानी अरावली पर्वतमाला सबसे प्राचीनतम पर्वतमालाओं में से एक है. हरियाणा से शुरू हुई अरावली का 90 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में है, जो 14 जिलों में फैली हुई है. अलवर से बांसवाड़ा तक 93 प्रतिशत अरावली की पहाड़ी 100 मीटर से कम है. राजस्थान के साथ साथ हरियाणा, दिल्ली, गुजरात में भी अरावली की पर्वतमाला फैली हुई है. 800 किलोमीटर तक फैली ये पर्वतमाला राजस्थान में 660 किलोमीटर तक फैली है. यह खनिज जिसमें सीसा, तांबा, जस्ता, अभ्रक और जल स्रोतों का भंडार है, जो स्थानीय लोगों के लिए जीवन रेखा है. यह सरिस्का और माउंट आबू जैसे वन्यजीव अभयारण्यों का घर है. बाण, लूनी, साबरमती जैसी कई प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है. भूगर्भशास्त्री डॉ.एम.के पंडित का कहना है कि अरावली का संरक्षण बहुत जरूरी है. यदि अरावली नहीं हुई तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव राजस्थान पर पड़ेगा. पर्यावरणविद् केएन जोशी का कहना है कि अरावली नहीं होगी तो राजस्थान में रेगिस्तान और बढ़ेगा.
अरावली ना हो क्या होगा? भू-गर्भशास्त्रों और पर्यावरणविद् की माने तो यदि अरावली ना हो तो राजस्थान में सबसे बड़ा संकट होगा. राजस्थान ग्राउंड वाटर पर निर्भर करता है. अरावली की पहाड़िया ग्राउंड WATER को रिचार्ज करती हैं. अरावली नदियों का उद्गम स्थल है. ईस्ट में ज्यादा बारिश और वेस्ट में कम बारिश होता है. बनास और लूणी नदियों के अस्तित्व पर खतरा हो सकता है. रेगिस्तानी इलाके बढ़ेंगे, जिससे पर्यावरण असंतुलित होगा. पानी, पर्यावरण के जीव जंतुओं के साथ साथ मनुष्य के जीवन पर भी संकट होगा. राजस्थान के साथ साथ इसका सीधा असर उन राज्यों में भी पड़ेगा जहां अरावली की पहाड़ी है ही नहीं, क्योंकि तब अरावली पर्वतमालाएं होगी नहीं ही नहीं तो रेगिस्तान की मिट्टी दूसरे राज्यों तक पहुंचेगी. जिसका सीधा असर ठंडे प्रदेश में जिसमें हिमाचल, उत्तराखंड तक पड़ेगा. जिससे बर्फ पिघलेगी. गंगा, जमुना में पानी ज्यादा बढ़ेगा. जिससे यूपी, बिहार में बाढ़ का खतरा होगा. अरावली का निर्माण टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से हुआ, जब भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराई, जिससे पृथ्वी की परत मुड़कर ऊपर उठी.
अरावली ना होने के नुकसान- मरुस्थल का विस्तार: अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल की गर्म हवाओं और रेत को दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे मैदानी इलाकों में फैलने से रोकती है. इसके न होने पर, थार मरुस्थल तेज़ी से आगे बढ़कर पूरे उत्तर भारत को बंजर बना देगा.
बढ़ता प्रदूषण: यह पर्वतमाला प्रदुषित हवा को फ़िल्टर करती है. अरावली के कमजोर पड़ने या खत्म होने से दिल्ली-एनसीआर की हवा बेहद जहरीली हो जाएगी और धूल भरी आंधियां बढ़ेंगी.
जल संकट: अरावली की चट्टानें बारिश के पानी को जमीन में सोखकर भूजल को रिचार्ज करती हैं. राजस्थान और हरियाणा की 80% नदियाँ (जैसे चंबल, साबरमती) अरावली से निकलती हैं. ये नदियाँ और जल स्रोत सूख जाएंगे. इस से पूरे क्षेत्र में पानी की भारी कमी हो जाएगी और बोरवेल सूख जाएँगे.
जलवायु परिवर्तन और वर्षा में कमी: अरावली मानसून की नमी भरी हवाओं को रोककर बारिश कराती है. इसके न होने पर बारिश का पैटर्न बिगड़ेगा, गर्मी बढ़ेगी और सूखा आम हो जाएगा.
जैव विविधता का नुकसान : अरावली वन्यजीवों का घर है. खनन और कटाव से इनका प्राकृतिक आवास सिकुड़ जाएगा, जिससे वन्यजीव-मानव संघर्ष बढ़ेगा और कई प्रजातियाँ खतरे में पड़ जाएँगी.
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव : पानी और हरियाली के अभाव में कृषि प्रभावित होगी, जिससे खाद्य सुरक्षा और लोगों की आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा, जैसा कि आज पश्चिमी राजस्थान में हो रहा है
पीटीसी-आशीष चौहान, जी मीडिया, जयपुर
इस खबर की फीड ओएफसी से स्लग से भेजी गई है। अरावली के कुछ ड्रोन शॉर्ट्स 2 सी में अटैच है.
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